Saturday 9 May 2015

Shiksha Mein Aatankvaad/ शिक्षा में आतंकवाद by Shri Satyanarayana Bhatnagar

      शिक्षा में आतंकवाद (श्री सत्यनारायण भटनागर) 

प्रस्तुत नाटक को भी मैंने माध्यमिक मिश्रित समूह अथवा कक्षा पाँच ,छ : और सात की कक्षाओं के साथ किया था । इस नाटक में नाटककार ने अध्यापक और अध्यापिकाओं द्वारा विद्यार्थियों को दिए जाने वाले दंड को आतंकवाद कहा है । आज की शिक्षा- प्रणाली में दंड का कोई स्थान नहीं ताकि बच्चे बिना भय के और  स्नेहपूर्ण वातावरण में विभिन्न विषयों का ज्ञान अर्जित कर सकें । विद्यार्थियों का भी कर्त्तव्य है कि  सदा गुरुजन की आज्ञा का पालन करें । 
पात्र - अम्बुज -अध्यापक , अनुराधा, अनुश्री, कृष्णा और कुणाल - छात्र और छात्राएं , अन्य बहुत-से छात्र और छात्राएं । 

(कक्षा छह का एक कमरा । छात्र एवं छात्राएं स्कूल यूनिफार्म पहने बैठे हैं । छात्रों के सामने पुस्तकें रखी हैं । अध्यापक एक कुर्सी पर बैठे हैं । उनके सामने टेबल पर बहुत-सी उत्तर-पुस्तिकाएं रखी हैं । टेबल पर एक घंटी भी रखी है। घंटी की ज़ोरदार ध्वनि होती है ।)
                                        पर्दा उठता है 
अध्यापक- (कुर्सी से खड़े होते हुए ) बच्चों , कापियाँ जाँच ली हैं । मैं हर एक छात्र की उत्तर-पुस्तिका उठाकर उसमें की गई गलतियाँ बताऊँगा । आप ध्यान से सुनें । ऐसी गलतियाँ दुबारा नहीं होनी चाहिए। 
हाँ , तो यह उत्तर-पुस्तिका है कृष्णा की । 
(उत्तर-पुस्तिका दिखाते हुए ) इसमें मात्रा सम्बन्धी बहुत-सी गलतियाँ हैं। (कृष्णा से सवाल पूछते हुए) बोलो कृष्णा, "दिन" शब्द में "इ" की मात्रा छोटी होती है या बड़ी । 
कृष्णा - (नेकर ऊपर उठाते  हुए ) सर, दिन में छोटी "इ " की मात्रा लगाती है । मैं तो छोटी "इ " की मात्रा ही लगाता हूँ ।    
अध्यापक- लेकिन इस उत्तर-पुस्तिका में तो बड़ी "ई" की मात्रा है । (ब्लैक बोर्ड पर लिखते हुए ) देखो, अगर बड़ी "ई" की मात्रा लगाकर "दीन " लिखोगे तो मतलब ही बदल जाएगा । "दीन" का अर्थ होता है गरीब । 
कृष्णा- पर सर, यह मेरी कॉपी नहीं है और ये अक्षर भी मेरे नहीं हैं । 
अध्यापक- (कुछ गुस्से से) अच्छा, ऐसी बात है तो मैं तुम्हें कॉपी दिखाता हूँ । तुम मुझे झूठा कह रहे हो? (कृष्णा उठता है। नेकर ऊपर खिसकाता हुआ अध्यापक के पास जाता है । कमर पर हाथ रखकर सामने खड़ा हो जाता है ।) 
कृष्णा- सर, यह कॉपी मेरी नहीं है और न लिखाई मेरी है । आप किसी और की कॉपी दिखा रहे हैं । 
अध्यापक- (कॉपी का मुख्य पृष्ठ दिखाते हुए ) यह किसका नाम और रोल नंबर है ? 
कृष्णा- (विनम्र होते हुए ) सर, यह तो मेरा ही नाम और रोल नंबर है, पर कॉपी के अंदर मेरे अक्षर नहीं हैं । 
अध्यापक- (एक तमाचा मारते हुए) क्यों , अपने अध्यापक को ही झूठा बताते हो? अध्यापक के सामने ऐसे अकड़कर कमर पर हाथ रखकर खड़ा हुआ जाता है ? तुममें कोई तमीज़ भी है या नहीं? 
कृष्णा- (रोता हुआ ) ऊँ ऊँ , आपने मुझे मारा …… लेकिन यह कॉपी मेरी नहीं है । इसमें लिखे अक्षर मेरे नहीं हैं। (रोते हुए नेकर ऊपर खिसकाता है।)
(तभी कक्षा में पीछे से ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ आती है । कक्षा के सब बच्चे पीछे मुड़कर देखते हैं । कुणाल अपनी जगह पर बैठकर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा है ।) 
अध्यापक- (आश्चर्य से ) क्यों कुणाल ! तुम्हें क्या हुआ ? तुम क्यों रो रहे हो ? हमने तो तुमसे कुछ कहा भी नहीं। 
(कृष्णा के रोने की आवाज़ अभी आ रही है ।)
कुणाल- (रोते हुए) सर, कृष्णा की कॉपी में अक्षर तो मेरे हैं । कृष्णा जब पानी पीने गया था , तब मैंने कॉपी बदल दी थी । इसमें की गई गलतियाँ तो मेरी हैं । (ऊँची आवाज़ में रोते हुए ) सर, अब आप मुझे मारेंगे ?   
(कक्षा के सभी छात्र हँसने लगते हैं । कृष्णा के रोने की आवाज़ रुकती है। अब पुन: दूसरे छात्र के रोने की आवाज़ आती है। इस रोने वाले दूसरे छात्र का नाम अद्वैत है।)
अध्यापक-(गुस्से से) यह कैसी कक्षा है? क्यों अद्वैत, अब तुम क्यों रो रहे हो? तुम्हें तो किसी ने कुछ कहा नहीं। 
अद्वैत- (रोते हुए ) सर, बात यह है कि  मैं कृष्णा के पीछे परीक्षा देने बैठा था । मैंनें कृष्णा की कॉपी की नक़ल की है । अब आप मेरी कॉपी जांचते हुए मुझे कृष्णा के द्वारा की गई गलतियों के लिए मारेंगे । यह सोचकर मैं रो रहा हूँ । (रोता जाता है ।)
अध्यापक- (हँसते हुए ) अब कक्षा में किसके रोने की बारी है? 
(सभी छात्र हँसने लगते हैं ।)
(तुरंत गम्भीर होकर अध्यापक अम्बुज छात्रों को सम्बोधित करते हैं) देखो बच्चों, नक़ल करने की आदत अच्छी नहीं है । परीक्षा में नक़ल करना तो शर्म की बात है । नक़ल करते हुए हम पकड़े जाते हैं तो इज़्ज़त घटती है और यदि न भी पकड़े जाएँ तो हमारा आत्मविश्वास घटता है । आज तक नक़ल करके कोई सर्वश्रेष्ठ नहीं हुआ है । परिश्रम के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं है। नक़ल करने वालों को बाद में रोना पड़ता है । क्यों बच्चों? (सभी छात्र हँसते हैं ।) 
अनुराधा- सर, आपने बहुत अच्छी बात कही । पर क्या बच्चों को मारना-पीटना आवश्यक है ? हमें समझाकर भी तो उनमें सुधार ला सकते हैं? 
अध्यापक - हाँ बेटी! तुम सच कहती हो । समझाकर भी काम हो सकता है। पर क्या करें, हम भी मज़बूर हो जाते हैं । 
अनुराधा - क्यों सर, यह मज़बूरी क्या है? क्या आपको भी आपके अध्यापक मार-पीटकर दंड देते थे । 
अध्यापक - (हँसते हुए) हमारे समय में तो मारना बहुत मामूली बात थी। एक कहावत प्रचलित थी ,"छड़ी पड़े छम छम , विद्या आए झम झम ।" 
अनुश्री- (गम्भीरता से ) तो क्या सर, आपके अध्यापक ने दंडस्वरूप मारा होगा और उनके अध्यापक ने भी उनको दंडस्वरूप मारा होगा। क्या यह मार-पीट परम्परागत चली आ रही है ? 
अध्यापक- (सर हिलाते हुए ) हाँ भई हाँ , यह मार-पीट की परम्परा तो न जाने कब से चली आ रही है। हम तो अपने अध्यापक से बहुत डरते थे । 
कुणाल - सर, यह तो शिक्षा में परम्परागत आतंकवाद हुआ । पढ़ाई-लिखाई में आतंक का क्या काम ? यह तो बंद होना चाहिए। 
अध्यापक- तुम सच कहते हो। यह तो ख़त्म हो ही गया समझो। आजकल अध्यापक दंड देते ही कहाँ हैं ?
अनुराधा - आजकल भी दंड तो दिया जा रहा है । बहुत-से अध्यापक आज भी पुराने तरीके से दंड देते हैं ।  
अध्यापक - नहीं अनुराधा, पुराने जमाने में दंड देने के जो तरीके थे, वे अब कहाँ ? पहले दंड देने के लिए बच्चों के कान खींचे जाते थे । उन्हें मुरगा बनाया जाता था और बेंच पर भी घंटों खड़ा रखा जाता था । आजकल तो ऐसा कुछ नहीं होता । 
कुणाल - सर, यह मुरगा बनाना क्या होता है ? बच्चों को मुरगा कैसे बनाया जाता है, यह भी तो बताइए। (सारी कक्षा में हँसी का ठहाका गूंज उठता है।)
अध्यापक - आओ कुणाल, यहाँ आओ । तुम्हें ही मुरगा बनाकर बताते हैं । ( कक्षा के छात्र हँसते हैं । कुणाल अध्यापक  के पास जाता है । अध्यापक उसे दोनों घुटनों के बल बैठाकर उसके पैर के नीचे से हाथ निकलवा कर कान पकड़वाते हैं ।) 
अध्यापक- इसे कहते हैं "मुरगा बनाना"। मुरगा बनने पर छात्र को कक्षा में इसी स्थिति में रहना पड़ता था । 
(छात्र पुन: हँसते हैं । कुणाल भी हँसते हुए उठ खड़ा हो जाता है ।) 
कुणाल - (मज़ाक करते हुए ) सर, कान पकड़ कर बैठक लगाने और मुरगा बनने से छात्र का स्वास्थ्य तो अवश्य सुधर जाता होगा । 
अध्यापक- (समझाते हुए ) इससे  स्वास्थ्य तो नहीं सुधरता था, लेकिन कक्षा में उस छात्र की प्रतिष्ठा ज़रूर गिरती थी । सब उस पर हँसते थे। यह दंड के भय से शिक्षा के लिए प्रेरित करने का एक मार्ग था। आजकल शिक्षा में बहुत सुधार हो गया है , बहुत सुविधाएँ हैं जो पहले नहीं थीं । मारपीट का दंड भी नहीं है। इसीलिए तुम लोगों को अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी समझकर ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए । तुम लोग परिश्रम करोगे तो तुम्हारा एवं देश का नाम ऊँचा  होगा । पढ़ाई में नक़ल बाजी नुकसानदायक है । आज तुम सच बोले , इसलिए तुम्हें क्षमा करता हूँ । अब अपनी गलतियों को सुधारो और खूब परिश्रम करो । 
(घंटी बजती है ।) 
अध्यापक - आज समय समाप्त हो गया है । अब कल आपकी और उत्तर पुस्तिकाओं पर चर्चा करेंगे । 
(अध्यापक उत्तर-पुस्तिकाएँ समेटते हैं ।)  
                                    पर्दा गिरता है । 

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