Saturday 2 May 2015

Kishore aur kishorion kaa sammelan (किशोरों और किशोरियों का सम्मलेन)

                                  किशोरों और किशोरियों का सम्मलेन 

(इस नाटिका की कथा हिंदी तृतीय भाषा के छात्र-छात्राओं ने स्वयं लिखी और उस पर अभिनय करके प्रार्थना सभा में पूरे स्कूल के समक्ष पेश किया।  इस तरह की क्रियाएं छात्र-छात्राओं में विषय के प्रति रुचि जगाने के लिए हम अध्यापक और अध्यापिकाएं यदा-कदा करते हैं ताकि भाषा के प्रति छात्र -छात्राओं का रुझान रहे।)

पहली छात्रा- अरे भाई, जल्दी आओ , जल्दी आओ । हमारे पास केवल १५ मिनट हैं -अपनी -अपनी मुसीबतें बताने के लिए। उसके बाद हम सोचेंगे कि  क्या करना है ? 

दूसरी छात्रा- मैं तो इन बड़ो से तंग आ गई हूं । तुम लोगों को नहीं पता कि मैं कितनी परेशान हूं । 

तीसरी छात्रा- इसलिए तो हम सब इकट्ठे हुए हैं । एक-दूसरे की परेशानी सुनकर हमें सोचना है कि  कैसे हमें अपने बड़ो से बात करनी है । पर बताओ , हुआ क्या है ?

दूसरी छात्रा-मेरे मम्मी-पापा बहुत अच्छे हैं पर कभी-कभी मुझे लगता है कि वे मुझे प्यार नहीं करते। मैं अगर घर में जोर से बोलूँ तो कहेंगे की धीरे बोलो, छोटी बहन सो रही है । तुम्हें तो पता है कि मैं कभी -कभी अपने नाख़ून चबाने लगती हूं तो वे मुझे बहुत डांटते हैं पर मेरी छोटी बहन अपना पूरा अंगूठा मुंह में ले ले तो वे उसकी फोटो लेते हैं । यह सब  क्या है?

चौथा छात्र -बस इतनी-सी बात । मुझसे पूछो, मेरी हालत क्या है?

पांचवा छात्र- तुम्हें क्या हुआ?

चौथा छात्र- अरे, स्कूल से मेरा घर कितना दूर है, तुम सब  हो। पर घर जाकर आराम करना तो दूर की बात है । मम्मी याद कराने  लगती हैं - अरे जल्दी नाश्ता कर लो, मास्टर जी आने वाले हैं । उनके जाने बाद ,चलो जल्दी से होमवर्क कर लो । फिर खाना खाओ  और सो जाओ । कोई टी. वी , प्रोग्राम नहीं , कुछ नहीं । शनिवार और रविवार को भी कभी -कभी टी. वी. देखने को नहीं मिलता । सिर्फ पढ़ाई, सिर्फ पढ़ाई ....... ।  

छठी छात्रा- शुक्र करो कि तुम शनिवार और रविवार को तो टी. वी. देख  वह अपने मनपसंद चैनल पर । मेरी ओर देखो , मैं तो केवल दूरदर्शन ही देख सकती हूं । मुझे तो दूसरे चैनल के बारे में कुछ भी पता नहीं । कभी-कभी बहुत मन करता है कि  मै दूसरे चैनल देखूं । 

सातवाँ छात्र - तुम लोग टी. वी. देखने के लिए परेशान हो । मेरी परेशानी अलग ही है । मुझे वायलिन बजाने का बहुत शौक है । मैं रोज उसकी करीब -करीब २ घंटे प्रैक्टिस करता हूं । अब कैसे हर विषय का होमवर्क करूं , समझ नहीं आता । घर में मम्मी-पापा पढ़ाई और वायलिन दोनों में अच्छा रहने को कहते हैं , स्कूल में तुम्हें पता ही है , होमवर्क न करने पर टीचर कुछ कहे या न कहे । मुझे शर्म आती है जब मैं न कहता हूं । 

आठवाँ छात्र - तुम्हारे जैसे मेरा भी हाल है । मुझे स्पोर्ट्स का इतना शौक है । इसलिए रोज क्रिकेट खेलने की प्रैक्टिस करने जाता हूं । जब कभी घर में आकर नहीं पढ़ पाता तो माता -पिता  डांटते हैं । समझ में नहीं आता, वे क्यों नहीं समझते कि मैं पढाई और खेल दोनों में कैसे बहुत अच्छा हो सकता हूं । कहीं तो सिर्फ ठीक रहूंगा । 
पांचवा छात्र- तुम दोनों ठीक कहते हो । तुम लोगों जैसे मैं भी परेशान हूं । तुम्हें पता है की मुझे भरतनाट्यम और क्लासिकल म्यूजिक का बहुत शौक है । अपने इस शौक और पढ़ाई दोनों को बहुत अच्छा बनाए रखने के चक्कर में मैं भी परेशान हो जाता हूं । इस चक्कर में कभी घर में डाँट तो कभी स्कूल में …… ।

नवाँ छात्र -मेरे मम्मी -पापा मुझे कुछ कहते तो नहीं हैं पर सच बताउं मैं तंग आ जाता हूं इस रोज -रोज पढ़ाई से । ऊपर से इतना भारी बैग उठाकर लाओ । क्या हम अपनी किताबें यहाँ नहीं रख सकते । सारा काम यहीं करें तो हम सबको कुछ परेशानी नहीं होगी । 

तीसरी छात्रा - बस, तुम्हारी परेशानियाँ तो कुछ भी नहीं है । मेरी सुनो तो तुम्हें पता चलेगा । नया स्कूल , नए दोस्त , नए टीचर्स , उफ ! सबको मुझे प्रूव करना है कि मैं पढने में अच्छी हूं और फिर सबसे दोस्ती बनानी । घर में भी दिखाना है कि मैं सब कुछ संभाल सकती हूँ । 

पहली छात्रा- हाँ , तुम ठीक कह रही हो । मैंने भी घर हाल में ही चेंज किया है , वहाँ पर नए लोगों से मिलना-जुलना, खेलने के लिए दोस्त बनाना, उफ ! बहुत परेशानी होती है । कभी-कभी तो बहुत अकेला महसूस होता है । 

दसवाँ छात्र- तुम सबकी परेशानी कुछ भी नहीं है । कोई यह नहीं पूछ रहा कि मैं क्यों गुस्से में हूँ । 

सातवाँ छात्र - अब तुम्हें क्या हुआ ?

दसवाँ छात्र- मुझे ? अरे, मुझे हिंदी के नाटक में भाग लेना है । उफ, ये मीनल आंटी ? उन्हें क्यों नहीं समझ में आता कि मैं हिंदी में नहीं बोल सकता । अब रोज नाटक की प्रैक्टिस और डायलॉग बोलना । रोज-रोज , रोज -रोज ……।  
सब छात्र-छात्राएं - क्यों न हम इन सब बड़ों के पास जाकर शिकायत करें कि वे हमें कितना परेशान करते हैं और मुसीबत में .......| 

ग्यारहवाँ छात्र - (कक्षा अध्यापक के रूप में ) घबराओ नहीं । मैंने सब सुन लिया है । पर क्या तुम्हें ही हम बड़ों से शिकायतें हैं । तुम हम सब से नहीं पूछना चाहोगे की हमें तुमसे क्या शिकायत है ? 

सब छात्र-छात्राएं -नहीं, नहीं, अंकल । हम तो एक -दूसरे से बातें कर रहे थे । हमें कोई शिकायत किसी से नहीं है । 

ग्यारहवाँ छात्र - कोई बात नहीं , फिर भी मैं तुमसे बात करना चाहता हूं । 

सब छात्र-छात्राएं -अंकल, अब आपकी क्लास नहीं है । हमारी तो इंग्लिश की क्लास है । 

ग्यारहवाँ छात्र - ठीक है, मैं अपनी क्लास में ही बात करुंगा । 

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