Friday 8 May 2015

Chounchu Nawab/चोंचू नवाब by K.P.Saxena

                         चोंचू नवाब (के . पी. सक्सेना )

(यह एकांकी मैंने मिश्रित माध्यमिक स्कूल के छात्र-छात्राओं अथवा कक्षा पाँच ,छ: और सात के साथ किया ।)

पात्र- नवाब , कुस्तुनतुनियां, मीर । 

(पर्दा खुलता है । मंच पर एक तख़्त है और पास में रखी हैं दो कुर्सियाँ । तख़्त पर पालथी मारे नवाब साहब बैठे हैं । उनके पास पानदान रखा है और एक बाल्टी । साथ ही लाल रूमाल में बंधी एक पोटली रखी है। नवाब साहब कुरते, पाजामे और टोपी में सजे हैं और दहाड़ें मार-मार कर रो रहे हैं । पहले से गीले किए गए रूमाल से आँखे पोंछ -पोंछ कर बाल्टी में निचोड़ रहे हैं । रो रोकर कहते जाते हैं -"हाय चोंचू नवाब! आप कहाँ चले गए? रोना रोककर नवाब साहब पान खाते हैं और आवाज़ देते हैं ।)  
नवाब- कुस्तुनतुनियां ……… जनाब कुस्तुनतुनियां साहब! (खीझकर) अबे ओ कुस्तुनतुनियां के बच्चे । 
(लुंगी पहने , नंगे बदन, टोपी लगाए नौकर कुस्तुनतुनियां का प्रवेश ।) 
कुस्तुनतुनियां - लो जी, मैं आ गया । आप हुक्म दे मारो । 
नवाब-  हम यहाँ मारे रंज के रो रोकर शोरबा हुए जा रहे हैं और आप अंदर मज़े में आमलेट झाड़ रहे हैं । 
कुस्तुनतुनियां - अजी , कहाँ बना आमलेट ? आज मुर्गी ने अंडा नहीं दिया। उसका मूड नहीं था । 
(बाहर से एक आवाज़- अरे भई , नवाब साहब घर में हैं या नहीं?)
नवाब- देख तो, बाहर कौन हलक फाड़ रहा है ।)
(कुस्तुनतुनियां बाहर चला जाता है । नवाब साहब जल्दी-जल्दी रोने लगते हैं और चोंचू  नवाब को याद करते हैं । नौकर लौटता है।)
नवाब- (आँसू बाल्टी में निचोड़ कर) कौन आया है?
कुस्तुनतुनियां -जी वही, जो पान में खाए जाते हैं । 
नवाब- मिर्जा कत्थाजानी !
(कुस्तुनतुनियां "नहीं" में सिर हिलाता है ।)
नवाब- पंडित चुनाचरण चतुर्वेदी ? 
कुस्तुनतुनियां -वे भी नहीं। 
नवाब- लाला छालीप्रसाद ?
कुस्तुनतुनियां -नहीं। 
नवाब- तो यह क्यों नहीं कहता कि  मीर इलायची साहब आए हैं । 
कुस्तुनतुनियां -हाँ हाँ , वे ही हैं । 
नवाब- जा, उन्हें अदब से उठा ला और हमारे पास रख दे । 
(कुस्तुनतुनियां जाता है और तुरंत मीर इलायची के साथ लौटता है । मीर साहब छड़ी हिलाते आते हैं । नवाब साहब फूट -फूट कर रो रहे हैं ।)
मीर - (कुर्सी पर बैठते हुए ) ऐ ? किस्सा क्या है , आप तो बिना कोमा-फुलस्टॉप रोए चले जा रहे हैं । 
नवाब- आप भी रोइए । बड़ी मनहूस खबर है, चोंचू नवाब नहीं रहे । 
मीर- (अचम्भे से ) क्या कहा? चोंचू नवाब नहीं रहे । रात ग्यारह बजे तक तो हमारे यहाँ शतरंज खेलते रहे थे । आउट किस वक्त हो गए ? 
नवाब - आज सुबह सुबह । (आँसू निचोड़ कर ) भाई , किसी तरह हमारे आँसू रोकिए । हम सुबह से अब तक साढ़े चार गैलन रो चुके हैं । न यकीन हो तो बोतल मँगाकर आँसू नाप लीजिए । 
मीर- नाप लूंगा । मगर ज़रा बताओ तो कि चोंचू  नवाब मरे  कैसे?
नवाब- कुछ न पूछिए । बड़ी दर्द भरी कहानी है। कल रात ग्यारह बजे हमें खबर मिली कि लाटसाहब गवर्नर बहादुर सुबह सात बजे हमसे कानपुर में मिलना चाहते हैं । 
मीर - अच्छा, तो? 
नवाब - हमने फौरन साईंस को बुलाकर हुक्म दे दिया कि घोड़े को चार बजे जगा दिया जाए । 
मीर- खैर, घोड़ा चार बजे जाग गया। आगे ?
नवाब- और हम तीन ही बजे जाग गए । नहाए , बालों में खुशबूदार तेल डाला । कुरते पर इत्र लगाया और ………। 
मीर - आप चल दिए । 
नवाब -अभी कहाँ । अभी तो बेगम डिब्बे में पान रख रही थीं । 
मीर - ओफ्फो। खैर , पान -वान लेकर आप तांगे पर बैठे और तांगा चला । 
नवाब - ऊ हूँ । चला कहाँ । अभी तो घोड़ा मुसम्मी का रस पी रहा था । 
मीर - क्या कहा ? 
नवाब - हाँ हाँ , मुसम्मी का रस । बगैर बाल्टी भर रस पिलाए हमने उसे कभी तांगे में नहीं जोता । खैर, तांगा चला और हवा की रफ्तार से हो लिया फैज़ाबाद वाली सड़क पर । 
मीर- मगर जाना तो आपको कानपुर था । 
नवाब- भई , आप भी अजीब हैं ! नवाबी घोड़े को कोई टोक सकता है कि किधर जा रहे हो ? फैजाबाद पहुंचकर उसे खुद गलती पता चली और पलटकर कानपुर की तरफ भागा । बस जी, कोई पैंतालीस मिनट में पहुंचे। मीर - गोया रॉकेट हो गया भाई, कुछ कम करो ।
नवाब- कम काहे को करें? घोड़ा मुसम्मी का रस पीकर चला था । अब जो कानपुर में तांगा रुका तो चें की आवाज़ हुई । हम घबराकर नीचे उतरे और देखते ही सिर पीट लिया । 
मीर - (घबराकर) क्यों?
नवाब- (रोकर ) अंधेरे में कमबख्त साईंस ने घोड़े की जगह धोखे से चोंचू नवाब को जोत दिया था। वे भी घोड़े के पास ही सोते थे । हाय! बेचारे इतने सीधे थे की दौड़ते रहे, मुँह से कुछ न बोले । कानपुर में हाँफकर दम तोड़ दिया पहिए तले कुचले गए । 
मीर - हाय बाप! यह तो गज़ब हो गया । उनकी लाश कहाँ है? 
नवाब- (सुबककर) अरे लाश कहाँ बची। सारा गोश्त कुत्ते खा गए । कुछ पंख ही हमारे हाथ लगे। यह रहे । 
(नवाब पोटली खोलकर मुर्गे के पर निकालते हैं और चूमकर रोने लगते है।)
मीर- (झुंझलाकर) क्या? ये तो मुर्गे के पंख हैं ? तो क्या चोंचू नवाब मुर्गा थे ?  उनकी चोंच थी? 
नवाब- और क्या सूंड होती? आप उन्हें मुर्गा कह लीजिए। हमारे तो चोंचू नवाब थे । हाय चोंचू  नवाब ! (रोते  हैं )
मीर- लानत है । मैं समझा आप अपने चचेरे बड़े भाई चोंचू नवाब की बात कर रहे हैं । 
नवाब- भई , उनका नाम तो चींचू नवाब है । काश, वे ही मर जाते। हमारे चोंचू नवाब तो बचे रहते । 
मीर- भाड़ में जाइए आप ! (छड़ी उठाकर बाहर निकल जाते हैं ।)
नवाब- कुस्तुनतुनियां ! 
कुस्तुनतुनियां- लो जी , आ गया । 
नवाब -(रो  कर ) जनाजा उठाओ । 
(नौकर नवाब साहब को उठा लेता है ।)
नवाब- नामाकूल । मुझे नहीं , चोंचू नवाब को । 
(नौकर मुर्गे के पर उठाए धीरे-धीरे अंदर जाता है । उसके पीछे -पीछे नवाब साहब आंसुओं की बाल्टी उठाए रोते हुए जाते हैं ।) 

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1 comment:

  1. After reading this play I went into the old memory Lanes of my childhood. I still remember that it was first publish in children's magazine " parag" inthe issue of April 1982

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