Monday 4 May 2015

Bhola Raam Kaa Jeev written by Harishamkar Parsaai / भोलाराम का जीव (हरिशंकर परसाई )


                          भोलाराम का जीव (हरिशंकर परसाई ) 

यह नाटिका छात्र-छात्राओं ने कक्षा दस में हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित कहानी  "भोलाराम का जीव " पढ़कर वैली स्कूल की दूसरी हिंदी अध्यापिका गीता खन्ना के निर्देशन में लिखी थी ।  कक्षा दस की  मौखिक परियोजना के लिए छात्रों  ने इस कहानी  को इस नाटिका के रूप में लिखा और फिर उसे प्रार्थना सभा में अभिनीत किया । इस तरह की क्रियाओं को छात्र-छात्राओं की सृजनात्मक योग्यता को बढ़ाने के लिए किया जाता है । ऐसी क्रियाओं से छात्र-छात्राओं का आत्मविश्वास बढ़ता है । छात्रों ने इस नाटिका  को वर्तमान वातावरण से जोड़ने के लिए आधुनिक वस्तुओं और उपकरणों का प्रयोग किया है ताकि नाटिका वर्तमान से जुडी लगे और लोगों को आनंद आए ।

पात्र - नारदमुनि, चित्रगुप्त , धर्मराज, यमदूत, बड़े साहब, भोलाराम की पत्नी, भोलाराम की पुत्री, भोलाराम, दो चपरासी ।  

(स्वर्ग में संगीत बज रहा है और बोर्ड पर स्वर्ग की टेक्नोलॉजी लिखी हुई हैं जैसे कि "कामना काउंटर" । स्टेज के दूसरी तरफ नरक है जहाँ चित्रगुप्त लेपटॉप पर कुछ कर रहा है ।) 
धर्मराज -  ये यमदूत कहाँ चले गए? मैंने कितनी बार एस एम एस किया है । 
चित्रगुप्त - हाँ , मैंने इंटरनेट पर उसकी इतनी खोज की है पर फिर भी कुछ पता नहीं । 
(यमदूत आता है -पसीना पोंछता है और प्रवेश करता है ।) 
धर्मराज-अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है? 
यमदूत - मैं कैसे बतलाउं की मेरा हाल क्या हुआ ? आप तो जानते हैं कि मैं अपना काम कितना अच्छा करता हूँ , पर आज एक बूढ़े आदमी के जीव ने मुझे चकमा दिया । 
चित्रगुप्त और धर्मराज (चिल्लाकर)- चकमा दिया ?
यमदूत - हाँ , पाँच दिन पहले भोलाराम के जीव ने देह त्यागी । मैं उसे स्वर्ग ला रहा था पर अचानक वह मेरे 
हाथों से गायब हो गया । मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला फिर भी कुछ नहीं पता चला । 
धर्मराज- मूर्ख , जीवों को लाते-लाते बूढ़ा हो गया फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया । 
यमदूत - (सिर झुकाकर ) महाराज, मेरी सावधानी में बिलकुल कसार नहीं थी । मेरे इन कुशल हाथों से दुनिया को चलाने वाले वकील भी नहीं छूट सके, पर आज कोई जादू ही हो गया । 
चित्रगुप्त - आजकल इस प्रकार का भ्रष्टाचार बहुत चला है । रेलवे वाले पार्सल में भेजे हुए फलों को चुरा लेते हैं और भेजे हुए कपडे पहनते हैं । एक बात और, राजनीतिक दलों के नेता अपनी विरोधी पार्टी के नेता को उड़ाकर कहीं बंद कर देते हैं । कहीं भोलाराम के जीव को भी किसी विरोधी ने मरने के बाद भी ख़राब करने के लिए उड़ा तो नहीं दिया ? 
धर्मराज- तुम दोनों बेवकूफी की बातें कर रहे हो । (चित्रगुप्त की ओर देखकर )  तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र हो गई है । भला भोलाराम जैसे साधारण दीन आदमी से किसी को क्या लेना-देना ? 
(नारदमुनि का प्रवेश)
नारद - क्यों धर्मराज, चिंतित बैठे हो ? क्या नरक में निवास स्थान की समस्या अभी भी हल नहीं हुई ?
धर्मराज- वह समस्या तो कभी की हल हो गई नारद मुनि ! नरक मे बहुत सारे भ्रष्ट कारीगर,ठेकेदार, इंजिनियर और ओवरसियर हैं । ये लोग भ्रष्ट हैं और पूरा पैसा लेकर सीमेंट में चूना मिलाकर इमारतें बनाते हैं । ये इमारतें थोड़ी-सी बारिश होने पर गिर जाती हैं । हाँ , नरक में बहुत सारे लोग हैं परन्तु इन सब लोगों के लिए इन्होने मकान बना दिए हैं । अब तो नई समस्या सामने आ गई है , यमदूत बताओ । 
यमदूत- भोलाराम नाम के एक जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी । मैं उसे स्वर्ग ला रहा था, लेकिन जीव  मुझे चकमा देकर न जाने कहाँ गायब हो गया । मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला फिर भी कुछ न पता चला । 
नारद- कहीं उस पर इन्कम टैक्स तो बकाया न था ? हो सकता है , इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट वालो ने रोक लिया हो ? 
चित्रगुप्त - (हँसकर ) अरे! इन्कम होती तो टैक्स देता .... भोलाराम भुखमरा था । 
नारद - मामला बड़ा दिलचस्प है । अच्छा , मुझे इसका पता तो बतलाओ , मैं ही पृथ्वी पर जाकर पता लगाता हूँ  । 
धर्मराज - अरे! शुक्रिया नारद मुनि! चित्रगुप्त भोलाराम की फाइल निकालो । 
चित्रगुप्त- (अपने लैपटॉप को देखकर ) ऑफ ओह ! ये लेपटॉप इतना धीरे चलता है , मुझे स्वर्ग टेक्नोलॉजी से एक पेंटियम-४ प्रोसेसर लाना है । 
धर्मराज - भोलाराम नाम का एक आदमी जबलपुर शहर में एक छोटी -सी झोपंडी में रहता था । वह गरीब था और उसकी एक पत्नी और तीन बच्चे थे । वह सरकारी नौकर था और पाँच साल पहले रिटायर हुआ था । मकान का किराया एक साल से नहीं दिया था , इसलि/ए मकान मालिक उसे घर से निकालना चाहता था । कुछ करो नारदमुनि, स्वर्ग की इज़्ज़त आपके हाथों मे है।  
(चित्रगुप्त नारदमुनि को फलॉपी देता है ।)
नारद- फिक्र मत करो । (नारद मुनि गिटार बजाकर "नारायण, नारायण" कहकर चला जाता है ।)

दृश्य २ 

(नारदमुनि भोलाराम के घर के बाहर आता है और एक औरत के रोने की आवाज सुनता है।)
नारद - ( मन में ) यही है ……… कोई है ?
(भोलाराम की बेटी घर के बाहर आती है ।)
भोलाराम की बेटी- आगे बढ़ो महाराज, आगे बढ़ो, ये कंगालों का घर है ।
नारद - मैं भीख माँगने नहीं आया बल्कि भोलाराम के बारे मे  पूछताछ करने आया हूँ । तुम्हारी माँ कहाँ है ?
भोलाराम की बेटी - (घर के अंदर जाते हुए ) माँ , ओ माँ, कोई साधु आया है ।
(भोलाराम की पत्नी का प्रवेश । वह रोते-रोते  बाहर आती है । )
नारद - सुना  है कि आपके पति का स्वर्गवास हो गया है , उनको क्या बीमारी थी ?
भोलाराम की बीवी -क्या कहूं ? गरीबी की बीमारी थी ।
नारद - गरीबों की बीमारी ? यह कैसी बीमारी है ?
भोलाराम की बीवी - पाँच साल हो गए थे उन्हें रिटायर हुए । पर आज तक पेंशन की एक फूटी कौड़ी नहीं मिली । दरख्वास्तें तो हम हर हफ्ते भेजते थे पर या तो जवाब नहीं आता था या आता था तो लिखा होता था कि "मामले पर विचार हो रहा है ।" मेरे गहने बेचकर घर का खर्चा चल रहा था और अब तो बर्तन बेचकर घर का गुज़ारा हो रहा है । इसी चिंता में घुलते-घुलते और भूख के कारण ही उन्होंने दम तोड़ दिया ।
नारद-(दुःख में ) क्या करें? उनकी उम्र ही इतनी थी ।
भोलाराम की बीवी-ऐसा मत कहो महाराज! पेंशन मिलती तो गुज़ारा हो जाता पर पेंशन ही नहीं मिली ।
नारद- (सोचकर) माँ यह बताओ कि क्या किसी से उनका विशेष प्रेम था जिससे उनका जी लगा था?
भोलाराम की बीवी-बाल-बच्चों के साथ ही उनका लगाव था ।
नारद- यह नहीं, क्या परिवार के बाहर कोई स्त्री .............
भोलाराम की बीवी- बको मत ! आप  साधु हैं , कोई लुच्चे-लफंगे नहीं, ज़िंदगी भर उन्होंने किसी दूसरी स्त्री को आँख उठाकर भी नहीं देखा ।
नारद- (हँसकर ) हाँ , तुम्हारा सोचना ठीक ही है । यही भ्रम अच्छी गृहस्थी का आधार है । अच्छा माता मैं चला।
भोलाराम की बीवी - महाराज, आप तो साधु हैं । क्या आप उनकी रुकी हुई पेंशन के बारे में कुछ कर सकते हैं ।  वरना मेरे बच्चे भूखे ही मर जाएंगे । आपका बड़ा भला होगा ।
नारद - (दया से ) इन दिनों साधुओं की बात कौन मानता है ? मेरा यहाँ कोई आश्रम भी नहीं है पर कोशिश करने में कुछ नहीं जाता । मैं पूछताछ करके देखूंगा ।

दृश्य ३ 

नारद- क्या यह पेंशन कार्यालय है ?
पहला बाबू - दिखता नहीं क्या ?
( नारद पहले बाबू को भोलाराम की  पूरी कहानी सुनाता है ।)
पहला बाबू - भोलाराम ? कौन भोलाराम? ओ भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं पर उन पर उसने वजन नहीं रखा था । शायद इसलिए ही उड़ गई होंगी ।
नारद - भाई, यहाँ इतने सारे पेपरवेट रखे हैं । इन्हे क्यों नही रख दिया ।
पहला बाबू - (हँसकर ) आप साधु हैं , आपको दुनियादारी कभी समझ नहीं आएगी । दरख्वास्तें पेपरवेट से नहीं दबतीं । आप उस कमरे में बैठे बाबू से मिल लीजिए ।
नारद - वहाँ ?
पहला बाबू- हाँ ।
(नारद एक के बाद एक कई बाबुओं से मिलता है । इसी तरह दफ्तर में घूमते हुए वह एक चपरासी से मिलता है ।)
चपरासी - महाराज, आप क्यों इस झंझट में पड़ गए? आप अगर साल भर भी यहाँ चक्कर लगाएंगे तो भी काम नहीं होगा । आप तो सीधे बड़े साहब से मिलिए । उन्हें खुश कर लिया तो अभी काम हो जाएगा ।
नारद- ऐसा क्या ?
चपरासी- हाँ ऐसा ।
(नारद बड़े बाबू के कमरे मे जाते हैं । बाहर दरवाजे के पास कुर्सी पर बैठा एक चपरासी सो रहा है। )
नारद- (अपने आप से ) अरे! यह चपरासी  तो  सो रहा है । क्या करुं? मैं अनुमति के बिना जाता हूँ ।
( नारद अंदर  जाता है । वहाँ बड़े साहब  उस पर बिना आज्ञा के अंदर आने पर नाराज़ होते हैं । )
नारद -साहब !
बड़े साहब- इसे मंदिर समझ रखा है  क्या? धड़धड़ाते हुए चले आए । चपरासी से अपने नाम की चिट क्यों नहीं भेजी ? 
नारद - कैसे और किसे चिट देता? चपरासी तो सो रहा था ।
बड़े साहब - (झिड़ककर ) क्या काम है ?
(नारद बड़े साहब को भोलाराम की पूरी कहानी बताता है ।)
बड़े साहब - आप साधु हैं , दफ्तर के रीति -रिवाज नहीं जानते । सच में भोलाराम की ही गलती है। भई , ये दफ्तर भी तो एक मंदिर है । इसलिए यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है ।
नारद- कैसा दान -पुण्य ?
बड़े साहब - हं  हं … … पैसों का । आप भोलाराम के बहुत करीबी मालूम होते हैं । भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं । उन पर वजन रखिए ।
नारद - वजन?
बड़े साहब - भई , वजन का मतलब .............  ये (पैसों की तरफ इशारा करता है )
नारद- यहाँ भी वजन की समस्या !
बड़े साहब - भई , आप नहीं समझे। सरकारी पैसों का मामला है । पेंशन का केस बीस दफ्तरों  में जाता है  । देर लग जाती है । हज़ारों बार एक ही बात को हज़ार जगह लिखना पड़ता है , तब पक्की होती है । हाँ , जल्दी भी हो सकती है । मगर ………।
नारद - मगर क्या ?
बड़े साहब- मगर वज़न चाहिए । आप समझे नहीं । जैसे आपकी यह सुन्दर गिटार, इसका भी वजन भोलाराम की दरख्वास्तों पर रखा जा सकता है । मेरी लड़की गाना-बजाना सीखती है , यह गिटार मैं उसको दे दूंगा । साधुओं की गिटार बड़ी पवित्र होती है , लड़की जल्दी संगीत सीख गई तो उसकी शादी हो जाएगी ।
(यह कहकर बड़े साहब नारद से उसकी गिटार ले लेते हैं । नारद अपनी गिटार बड़े साहब से छीन लेता है । पर थोड़ा सोचने के बाद वह अपनी गिटार उन्हें दे देता है । )
नारद- धर्मराज से वादा किया था । यह लीजिए ।
बड़े साहब- यह हुई न बात ! (ख़ुशी से )
नारद - अब तो भोलाराम की पेंशन का ऑर्डर जल्दी से निकाल दीजिए ।
बड़े साहब- अरे हाँ , (चपरासी को बुलाता है ) भोलाराम की फाइल लाओ।
(चपरासी हाज़िर होता और सौ -डेढ सौ आवेदनों और दरख्वास्तों से भरी भोलाराम की फाइल देता है ।)
बड़े साहब - (फाइल देखते हुए ) क्या नाम बताया था आपने साधुजी ?
नारद -(यह सोचकर कि शायद बड़े साहब को ज़ोर से सुनाई देता है , इसलिए ज़ोर से बोलता है ।) भोलाराम ! भोलाराम!
भोलाराम- (फाइल के अंदर से आव आवाज आती है ) कौन पुकार रहा है  मुझे? पास्टमैन है क्या? पेंशन का ऑर्डर आया है क्या ?
( नारद और बड़े बाबू चौंक कर अपनी-अपनी कुर्सियों से उठ गए। )
नारद - भोलाराम ? क्या तुम भोलाराम के जीव हो ?
भोलाराम- हाँ !
नारद- मैं नारद हूँ । मैं तुम्हें लेने अाया हूँ । चलो, वहाँ सब लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं ।
भोलाराम- मुझे नहीं  जाना । मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में अटका हूँ । यहीं मेरा मन लगा है । मैं अपनी दरख़्वास्तों को छोड़कर नहीं जा सकता ।
नारद- हे प्रभु!यह कैसा ज़माना आ गया है ? अब आत्माएं भी कम्प्यूटर की स्क्रीन पर दिखती हैं । (दौड़ते हुए ) कलियुग ! कलयुग ! घोर कलयुग !

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